Khubsurat Takraav - 1 in Hindi Love Stories by Amreen Khan books and stories PDF | खूबसूरत टकराव - 1

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खूबसूरत टकराव - 1

“तुम जैसे लोग दूसरों की ज़िंदगी से खेलते हो, और सोचते हो सबकुछ ख़रीद सकते हो… लेकिन याद रखना, मैं बिकने वालों में से नहीं हूँ।”



उसकी आवाज़ धीमी थी, मगर हर लफ्ज़ में आग थी।

सामने खड़ा था कबीर मल्होत्रा — ठंडी निगाहें, बेमिसाल आत्मविश्वास, और वो खामोशी जो किसी तूफ़ान से कम नहीं लगती थी।

कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया,

> “और तुम जैसे लोग हमेशा ये भूल जाते हो कि दुनिया सिर्फ़ सच से नहीं, राज़ों से चलती है…”



नैना शाह ने पलटकर कहा,

> “तो फिर आज मैं तुम्हारा सबसे बड़ा राज़ खोलने आई हूँ।”



कमरे में सन्नाटा छा गया।
सिर्फ़ हवा की आवाज़ थी — और दोनों की निगाहों में जंग।


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पहला अध्याय — “बारिश में आग”

मुंबई की शाम हमेशा किसी फ़िल्म जैसी लगती थी —
नीऑन लाइट्स, ट्रैफिक की आवाज़ें, और समंदर से आती नम हवा।
शहर के सबसे ऊँचे टॉवर Malhotra Heights के 42वें माले पर,
आज मीडिया के कैमरे चमक रहे थे।

वहाँ था शहर का सबसे चर्चित आदमी — कबीर मल्होत्रा,
Malhotra Global Group का मालिक,
जिसके बारे में कहा जाता था —
"वो जब मुस्कुराता है, तो किसी की नौकरी जाती है।"

आज उसकी कंपनी का नया टेक प्रोजेक्ट लॉन्च हो रहा था —
एक सैटेलाइट सिस्टम जो भारत की सिक्योरिटी सर्विस को नई ऊँचाई देने वाला था।
लोग उसे जीनियस कहते थे…
मगर कोई नहीं जानता था कि वो किससे डरता है।


---

उसी भीड़ में एक लड़की थी — नैना शाह,
हाथ में कैमरा, आँखों में सवाल, और दिल में एक ही मक़सद — सच उजागर करना।
वो एक इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट थी,
जिसकी रिपोर्टिंग ने कई बड़े नेताओं और कंपनियों को हिला दिया था।

और आज उसका निशाना था — कबीर मल्होत्रा।


---

(इवेंट हॉल, कैमरों की फ्लैश के बीच)

रिपोर्टर: “मिस्टर मल्होत्रा, आपकी कंपनी पर आरोप है कि इस प्रोजेक्ट में सरकारी डेटा का गलत इस्तेमाल हुआ है। इस पर क्या कहेंगे आप?”

कबीर मुस्कराया —
“अगर हर अफ़वाह पर सफाई देने लगूँ, तो मुझे बिज़नेस छोड़कर अख़बार शुरू करना पड़ेगा।”

हॉल में हँसी गूँज उठी।
लेकिन तभी, भीड़ के बीच से एक आवाज़ आई —
“अफ़वाह नहीं, सबूत चाहिए?”

सबकी नज़रें मुड़ीं।
वो थी — नैना शाह।
सफ़ेद शर्ट, ब्लैक जैकेट, कैमरा गले में, और आँखों में चिंगारी।

कबीर ने उसे देखा — पहली बार।
और उसकी मुस्कान गायब हो गई।

नैना: “आपके प्रोजेक्ट से जुड़ी कंपनी ZionTech के डेटा सर्वर में ब्लैकलिंक पाया गया है। वो सर्वर आपकी सिग्नेचर से अप्रूव हुआ था। क्या कहेंगे आप?”

हॉल में सन्नाटा छा गया।
कबीर ने माइक नीचे रखा,
धीरे-धीरे उसके पास आया, और कहा —
“नाम क्या बताया तुमने?”

नैना: “नैना शाह। ‘ट्रुथलाइन’ न्यूज़।”

कबीर (धीरे से): “तो मिस शाह… सच बोलना सीखो, लेकिन वक्त देखकर।”


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वो पल किसी फिल्म के सीन जैसा था —
जहाँ दो किरदार पहली बार आमने-सामने आते हैं,
और हवा में कोई अदृश्य चिंगारी जल उठती है।

नैना पीछे नहीं हटी।
“आपकी सच्चाई मैं सबके सामने लाऊँगी, मिस्टर मल्होत्रा।”

कबीर ने आँखों में झाँकते हुए कहा,
“सच्चाई तब सामने आती है जब कोई बचा हो उसे सुनने वाला।”

वो चला गया, और पीछे रह गई नैना की तड़पती साँसें।


---

रात — शहर के किनारे

नैना अपने ऑफिस लौटी।
टेबल पर बिखरे कागज़, लैपटॉप पर खुले कोड्स, और दीवार पर लगी कबीर की तस्वीरें।
उसके पास था एक लीक्ड ईमेल, जिसमें लिखा था —
"Project ZEUS – Controlled Satellite Authorization – KM/Sign/Alpha"

वो धीरे से बोली —
“तो तुम वाकई कुछ छिपा रहे हो, कबीर मल्होत्रा।”

तभी उसके लैपटॉप की स्क्रीन झिलमिलाई —
और अचानक उसपर मैसेज आया:

> “तुम्हें लगता है तुम मुझे देख रही हो, लेकिन असल में मैं तुम्हें देख रहा हूँ।”



नैना के हाथ काँप गए।
कमरे में किसी ने टाइप नहीं किया था, मगर कर्सर खुद चल रहा था।
वो तुरंत उठी, खिड़की खोली —
बाहर सिर्फ़ अंधेरा और दूर से आती समंदर की गूंज।


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अगली सुबह — गोवा का एयरपोर्ट

नैना के पास कॉल आया —
“अगर तुम Project ZEUS की सच्चाई जानना चाहती हो, तो गोवा आओ।
Hotel Blue Haven, रूम 707.”

कॉल कट गया।
नंबर ट्रेस नहीं हुआ।

वो बेतहाशा निकली —
जैसे कोई आग उसके भीतर जल उठी हो।

उधर, उसी दिन कबीर मल्होत्रा भी गोवा पहुँच चुका था —
क्योंकि उसे एक इंटरनल सिक्योरिटी ब्रेक की खबर मिली थी।
दोनों की मंज़िल अलग थी,
मगर रास्ता वही।


---

गोवा — रात का तूफ़ान

Hotel Blue Haven, रूम 707.
कमरा अँधेरा था।
नैना अंदर गई, टॉर्च ऑन की —
और देखा, कमरे की दीवार पर खून से लिखा था — “ZEUS IS WATCHING.”

अचानक पीछे से दरवाज़ा बंद हुआ।
वो पलटी —
किसी ने उसका हाथ पकड़ा, और दीवार से सटा दिया।

“कौन हो तुम?” उसने चिल्लाया।
“वही जो तुम्हें बचाने आया है।”

रोशनी जली —
सामने था कबीर मल्होत्रा।

नैना गुस्से से काँप गई —
“तुम? तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

कबीर ने उसकी कलाई छोड़ी,
धीरे से कहा —
“तुम्हें मारने वाला यहाँ था… लेकिन तुम पहले पहुँच गईं।”

“मतलब क्या है?”

“Project ZEUS सिर्फ़ टेक प्रोजेक्ट नहीं… एक ग्लोबल हथियार है। और अब कोई तीसरा हमारे हर कदम पर नज़र रख रहा है।”

नैना का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
“कौन?”

कबीर की आवाज़ धीमी हो गई —
“मुझे नहीं पता… लेकिन वो हमारे बीच है।”


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बाहर बारिश तेज़ हो गई थी।
खिड़की से आती बिजली की चमक उनके चेहरों पर पड़ रही थी।
दोनों के बीच अब सिर्फ़ नफ़रत नहीं, डर भी था।

नैना ने धीरे से कहा —
“मुझे सच चाहिए, बहाने नहीं।”
कबीर ने जवाब दिया —
“सच जानने की क़ीमत जान देकर चुकानी पड़ती है… तैयार हो?”

वो कुछ पल तक उसे देखती रही,
फिर बोली —
“अगर यही रास्ता है, तो चलो मर कर देखते हैं कि सच्चाई कैसी लगती है।”


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आख़िरी सीन (अध्याय-1 का क्लोज़िंग)

बाहर समंदर गरज रहा था,
अंदर दो अजनबी एक मिशन की ओर बढ़ चुके थे।
नैना ने पीछे मुड़कर देखा,
कबीर की आँखों में कुछ था —
जैसे वो पहले से सब जानता हो,
मगर कुछ छिपा रहा हो।

और वहीं, होटल की छत पर बैठा कोई कैमरा धीरे-धीरे घूम रहा था,
उसके स्क्रीन पर दोनों के चेहरे थे —
और नीचे लिखा था:

> "TARGET LOCKED – PHASE ONE INITIATED."




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"तुम्हें देखकर हमेशा ऐसा लगता है... जैसे वक्त थम गया हो — लेकिन अफ़सोस, तुम हमेशा जल्दबाज़ी में चली जाती हो।”
कबीर मल्होत्रा की यह बात किसी मज़ाक की तरह नहीं, बल्कि किसी पुराने गिले की तरह हवा में तैर गई।

नैना शाह ने मुड़कर देखा।
उसकी आँखों में एक पल के लिए हैरानी थी, फिर झुंझलाहट।
“आप हर जगह नज़र क्यों आ जाते हैं? पार्क में, सुपरमार्केट में, अब तो मेरे ऑफिस के बाहर भी!”

कबीर मुस्कुराया — वो मुस्कान जो किसी को चिढ़ा भी सकती थी और खींच भी सकती थी।
“शायद किस्मत को तुम्हारी आदत पड़ गई है।”

नैना ने झट से अपना पर्स उठाया, कदम तेज़ किए और बाहर निकल गई।
लेकिन जाते-जाते उसने पलटकर देखा — कबीर वहीं खड़ा था, उसी मुस्कान के साथ... जैसे वो जानता हो कि कहानी अब शुरू हो चुकी है।


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मुंबई का एक छोटा-सा इलाका — बांद्रा वेस्ट।
सड़क के किनारे बरसात की बूंदों से चमकते पेड़, और हवा में मिट्टी की खुशबू।
नैना शाह, एक इंटीरियर डिज़ाइनर, अपने छोटे से फ्लैट में अकेली रहती थी।
उसके दिन सादे थे — कॉफी, काम, और खामोशी।
वो किसी से ज़्यादा बात नहीं करती थी, लेकिन उसकी आँखों में हमेशा कुछ कहने की कोशिश रहती थी...
कुछ ऐसा जो उसने बरसों से छुपा रखा था।

कबीर मल्होत्रा, दूसरी तरफ़, एक फ़ोटोग्राफ़र और ट्रैवल ब्लॉगर था।
उसे शहरों की नहीं, चेहरों की कहानियाँ कैद करना पसंद था।
और न जाने क्यों, नैना का चेहरा उसे एक रहस्य लगता था — जैसे उस पर कोई अधूरी कहानी लिखी हो।


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उस शाम जब नैना ऑफिस से घर लौटी, तो उसकी गैलरी में खड़ा कोई फोटो खींच रहा था।
वो चीख़ पड़ी —
“कौन है वहाँ?!”

लाइट्स झपकाईं, और उसी पल बाहर बालकनी से कबीर की आवाज़ आई —
“Relax... सिर्फ़ तस्वीर ले रहा था... तुम्हारे पौधों की, तुमसे ज़्यादा वो ज़िंदा लग रहे थे।”

“क्या बकवास है ये? ये प्राइवेट प्रॉपर्टी है!”
नैना गुस्से में बालकनी की ओर बढ़ी।

कबीर कैमरा नीचे रखते हुए बोला,
“गलती हो गई... लेकिन दिलचस्प जगह है तुम्हारा घर। हर चीज़ में एक सलीका है — बस दीवारों में थोड़ी तन्हाई ज़्यादा है।”

नैना का चेहरा सख़्त हो गया,
“आपको मेरी ज़िंदगी की तन्हाई मापने की ज़रूरत नहीं।”

कबीर मुस्कराया —
“शायद नहीं... लेकिन किसी को तो नोटिस करना चाहिए।”


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उस रात, नैना देर तक सो नहीं सकी।
वो सोचती रही — कौन है ये आदमी? उसकी बातें उसके मन में क्यों गूंज रही हैं?
वो चाहती थी कि न सोचे... लेकिन सोचती रही।

उधर, कबीर अपने कैमरे में तस्वीरें देख रहा था।
हर तस्वीर में नैना का एक कोना था — कहीं उसका झूलता पर्दा, कहीं अधखुली खिड़की।
वो खुद से बोला,
“ये लड़की कुछ छुपा रही है... और मुझे पता लगाना होगा क्या।”


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अगले दिन...
नैना मंदिर के बाहर अपनी कार से उतर रही थी, तभी कबीर फिर वहीं!
उसने मुस्कुराकर कहा,
“तुमसे मिलना अब इत्तेफ़ाक़ नहीं लगता।”

नैना ने पलटकर कहा,
“तो फिर क्या है?”

कबीर ने हल्के से कहा,
“शायद... कोई कहानी जो खुद-ब-खुद लिखी जा रही है।”


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(कभी-कभी जो नसीब में नहीं होता... वही बार-बार सामने आता है)


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“कबीर, तुझे शादी में तो आना ही पड़ेगा!”
फोन के दूसरी तरफ़ उसके बचपन के दोस्त राहुल की आवाज़ थी।

कबीर मल्होत्रा ने अपने कैमरे से नज़रें हटाईं और हँसते हुए बोला,
“मुझे तो लगा तू फिर किसी हिल स्टेशन चला गया होगा अपनी होने वाली बीवी को दिखाने।”

“अबे पागल! मैं शादी कर रहा हूँ। असली वाली शादी। तू नहीं आया तो मेरी बरात अधूरी रह जाएगी।”
राहुल की बात सुनकर कबीर मुस्कराया —
“ठीक है भाई, तेरा इत्तेफ़ाक़ भी पूरा कर देते हैं।”


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दो दिन बाद, मुंबई के पॉश इलाके जुहू में एक बड़े से बंगले में रोशनी झिलमिला रही थी।
बाहर गाड़ियों की लाइन, अंदर हँसी, गाने, और हर कोने में खुशियों का शोर।
ये वही घर था जहाँ नैना शाह पिछले दो महीनों से एक इंटीरियर प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी —
वो जानती थी कि यहाँ आज शादी का फंक्शन है, पर उसने सोचा नहीं था कि उसकी किस्मत भी आज कोई नया खेल खेलेगी।


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नैना नीले रेशमी सूट में सजी थी।
उसके कानों में झुमके झूल रहे थे, और बाल हल्के खुले हुए।
वो घर की सजावट चेक कर रही थी, जब पीछे से किसी ने कहा —

“फिर मिल ही गए... इस बार भी इत्तेफ़ाक़ समझ लूँ?”

वो पलटती है — और सामने कबीर मल्होत्रा।
काला कुर्ता, सादा लेकिन करिश्माई मुस्कान, और हाथ में वही कैमरा।

नैना का चेहरा पहले हैरानी से, फिर झुंझलाहट से भर गया।
“आप यहाँ क्या कर रहे हैं? हर बार आप मेरे आस-पास ही क्यों आ जाते हैं?”

कबीर ने कैमरा कंधे पर टाँगते हुए कहा,
“क्योंकि मैं शादी का फ़ोटोग्राफ़र नहीं... दूल्हे का दोस्त हूँ।”
और हँस पड़ा।

नैना ने गहरी साँस ली, “Perfect. अब इस शादी में भी इत्तेफ़ाक़ का बहाना बना लीजिए।”

कबीर थोड़ा पास आया, मुस्कराकर बोला —
“शायद मैं नहीं, किस्मत बार-बार मुझे तुम्हारे करीब भेज रही है।”

नैना ने नज़रे चुराते हुए कहा,
“मुझे किस्मत पर यकीन नहीं।”
कबीर ने ठंडी साँस लेकर कहा,
“फिर भी, यकीन न करने वालों को ही ज़िंदगी सबसे अजीब सरप्राइज़ देती है।”


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शाम बढ़ती गई।
डेकोरेशन की चमक, फूलों की खुशबू, और संगीत के बीच कबीर की नज़रें बार-बार नैना को ढूँढती रहीं।
वो उसे देखता — कभी मेहमानों के बीच किसी बुज़ुर्ग से बात करती, कभी फूलों की जाँच करती, कभी बस खामोश बैठी कॉफी पीती हुई।

हर बार कबीर के कैमरे की लेंस अपने आप उसी की तरफ़ घूम जाती।


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थोड़ी देर बाद, जब ‘मेहंदी’ का प्रोग्राम चल रहा था, तभी बाहर तेज़ बारिश शुरू हो गई।
सभी मेहमान अंदर भागे, और तभी छत की तरफ़ से आवाज़ आई —
“नैना! ऊपर से पानी लीक हो रहा है, जल्दी आओ!”

वो दौड़कर ऊपर पहुँची — और वहाँ पहले से कबीर खड़ा था।
छत से पानी रिस रहा था, और कबीर बारिश में भीगता हुआ बाल्टियाँ हटा रहा था।

नैना ने झुंझलाकर कहा,
“आप यहाँ क्या कर रहे हैं?”

कबीर ने बिना उसकी ओर देखे कहा,
“मदद कर रहा हूँ... वैसे भी, तुम्हें अकेले झगड़ते देखना बोरिंग हो जाता है।”

नैना ने मुँह बनाया,
“आप बहुत परेशान करने वाले इंसान हैं।”
कबीर मुस्कराया,
“और तुम बहुत ख़ूबसूरत जब गुस्सा होती हो।”


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बारिश अब और तेज़ थी।
छत के कोने में बिजली की गड़गड़ाहट के साथ एक बड़ा पर्दा उड़ गया, और दोनों अचानक करीब आ गए।
वो पल कुछ सेकंड का था, पर दोनों की साँसें जैसे थम गईं।

कबीर ने उसकी आँखों में देखा —
वो आँखें जो अब तक सिर्फ़ नाराज़ी में दिखती थीं, अब किसी पुराने दर्द में डूबी थीं।

उसने धीरे से पूछा,
“तुम इतनी दूर क्यों रहती हो सबसे?”

नैना ने नज़रें झुका लीं,
“क्योंकि पास आने वाले लोग... हमेशा दूर चले जाते हैं।”

कबीर कुछ पल चुप रहा, फिर बस मुस्करा दिया।
“तो इस बार मैं जाऊँगा नहीं।”

नैना ने पलटकर देखा —
“तुम्हें लगता है, हर कोई ठहर सकता है?”

कबीर ने धीरे से कहा,
“शायद ठहरना किस्मत में नहीं... पर कोशिश करना मेरा फैसला है।”


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नीचे से आवाज़ आई —
“नैना दी! जल्दी आइए, संगीत शुरू हो गया!”
दोनों नीचे आए, जैसे कुछ हुआ ही न हो, लेकिन उस एक पल में कुछ बदल गया था।


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संगीत शुरू हुआ।
रोशनी, संगीत, और हँसी के बीच कबीर की निगाहें फिर नैना पर टिक गईं।
वो पहली बार मुस्करा रही थी — जब राहुल की बहन ने उसे ज़बरदस्ती डांस फ्लोर पर खींच लिया।
नैना झिझकी, फिर धीरे-धीरे थिरकने लगी।

कबीर कैमरा उठाए खड़ा था — लेकिन इस बार उसने क्लिक नहीं किया।
वो बस देखता रहा।

“कुछ लम्हे कैमरे में नहीं, दिल में रखे जाते हैं।”
वो खुद से बुदबुदाया।


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शाम का अंत हुआ।
लोग धीरे-धीरे जा रहे थे।
कबीर अपनी कार की ओर बढ़ा, तभी पीछे से नैना की आवाज़ आई —
“कबीर... एक मिनट।”

वो पलटा —
नैना के हाथ में एक छोटी सी चाँदी की पेन ड्राइव थी।

“ये घर की डेकोरेशन की फाइल्स हैं... कल क्लाइंट को भेजनी हैं, लेकिन लैपटॉप क्रैश हो गया है। तुम फोटोग्राफर हो न, शायद रिपेयर में मदद कर सको।”

कबीर मुस्कराया,
“यानी अब बहाना तुम बना रही हो।”

नैना ने होंठ भींचे,
“मैंने सिर्फ़ मदद मांगी है, इशारा नहीं।”

कबीर हँस पड़ा —
“मदद कर दूँगा, लेकिन बदले में कॉफी चाहिए। सिर्फ़ कॉफी।”

नैना ने एक पल को सोचा, फिर बोली,
“Fine... कॉफी।”
और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई।


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अगली सुबह, बांद्रा के एक छोटे कैफ़े में दोनों आमने-सामने बैठे थे।
कॉफी की खुशबू, हल्का संगीत, और बारिश की धुंधली परछाइयाँ।

कबीर ने धीरे से कहा,
“तुम्हारी खामोशी में बहुत कुछ छिपा है नैना। कभी बताओगी क्या?”

नैना ने कॉफी की चुस्की ली,
“कुछ बातें वक्त आने पर ही बताई जा सकती हैं... और कुछ बातें वक्त बताने की हिम्मत नहीं करता।”

कबीर ने सिर हिलाया,
“तो फिर मैं इंतज़ार कर लूँगा।”


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वो बातें करते रहे — कभी बारिश पर, कभी पुराने गानों पर, कभी बस चुप रहकर एक-दूसरे को देखते हुए।
और इसी चुप्पी में कुछ नया जन्म ले रहा था —
एक एहसास, जो अभी इकरार नहीं बना था,
लेकिन इंकार भी नहीं रहा था।


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कहानी अब उस मोड़ पर थी जहाँ दोनों के बीच इत्तेफ़ाक़, अब किसी अदृश्य धागे में बदलने लगा था।
लेकिन ज़िंदगी के पास अभी और चालें थीं।

क्योंकि उसी रात, जब नैना घर पहुँची —
उसके दरवाज़े पर एक लिफ़ाफ़ा पड़ा था, बिना नाम का।
अंदर सिर्फ़ एक लाइन लिखी थी —

“जो बीता है, वो लौटने वाला है...”

नैना का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
वो लिफाफ़ा हाथ में लिए खिड़की की ओर देखती रही —
बाहर वही बारिश थी, जो सुबह थी...
पर अब हवा में कुछ बदल चुका था।


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(कभी-कभी अतीत चुपचाप वापस आ जाता है... ठीक उसी वक्त जब तुम उसे भूलना चाहते हो)


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बारिश अब भी खिड़की पर टपक रही थी।
नैना शाह लिफ़ाफ़ा हाथ में लिए खड़ी थी, उसकी आँखें उस एक लाइन पर अटक गई थीं —

“जो बीता है, वो लौटने वाला है...”

शब्द छोटे थे, पर उनमें छुपा डर बहुत गहरा था।
उसके हाथ काँप रहे थे। उसने चारों ओर देखा —
कमरा वही था, दीवारें वही, पर जैसे माहौल अचानक ठंडा हो गया था।

वो धीरे से कुर्सी पर बैठ गई।
एक पल को लगा, जैसे कोई अदृश्य नज़र उसे देख रही हो।

उसने खुद को समझाया —
“शायद किसी का मज़ाक होगा... शायद।”

पर उसके दिल की धड़कन उसे झूठा साबित कर रही थी।


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अगली सुबह...
कॉफी का प्याला हाथ में था, पर स्वाद जैसे खो गया था।
उसने तय किया, वो आज ऑफिस नहीं जाएगी।
वो बस शांति चाहती थी।

लेकिन तभी फोन बजा —
“नैना, कहाँ हो तुम? क्लाइंट का मीटिंग है आज दोपहर में।”
वो उसकी असिस्टेंट रुही थी।

नैना ने थकी आवाज़ में कहा,
“तुम संभाल लो आज... मैं थोड़ी तबियत ठीक नहीं।”

फोन काटते ही वो बालकनी की ओर बढ़ी —
बारिश थम चुकी थी, पर हवा में अभी भी नमी थी।
वो सोच रही थी — क्या ये खत किसी पुराने राज़ से जुड़ा है?
वो राज़ जिसे वो किसी से नहीं बताती...
यहाँ तक कि खुद से भी नहीं।


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दोपहर में...
डोरबेल बजी।
दरवाज़ा खोला तो सामने कबीर मल्होत्रा था, हाथ में कॉफी कप्स लिए।

“तुम्हारी पसंद याद है — ब्लैक कॉफी, बिना शुगर।”
उसकी मुस्कराहट में वही अपनापन था जो अनजाने में सुकून देता है।

नैना ने कुछ नहीं कहा। बस सिर झुका कर बोली,
“तुम्हें किसने बताया मैं घर पर हूँ?”

कबीर बोला,
“इंस्टाग्राम पर आज कोई ‘स्टोरी’ नहीं डाली तुमने। तुम जब ठीक नहीं होती, तब सोशल मीडिया से ग़ायब हो जाती हो... याद है?”

नैना ने एक पल उसे देखा —
“तुम मुझ पर नज़र रखते हो?”

कबीर ने हल्के से कहा,
“नज़र नहीं... बस परवाह करता हूँ।”


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वो दोनों सोफ़े पर बैठे।
कुछ देर चुप्पी रही, फिर कबीर ने पूछा —
“क्या हुआ नैना? चेहरा उतरा हुआ है।”

नैना ने लिफ़ाफ़ा उसके सामने रख दिया।
कबीर ने खोला, अंदर वही लाइन थी।
उसने ध्यान से देखा, फिर पूछा —
“ये किसी को पहचानती हो तुम?”

नैना ने सिर हिलाया,
“नहीं। लेकिन... ये हैंडराइटिंग बहुत जानी-पहचानी लगती है।”

कबीर ने धीरे से कहा,
“किसकी?”

नैना की आँखें भीगने लगीं।
“तीन साल पहले मेरी ज़िंदगी में कोई था — आर्यन। उसने कहा था कि अगर मैं उसे छोड़ दूँगी, तो वो कभी नहीं मरेगा... बस लौट आएगा।”

कबीर के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई।
“आर्यन...?”

नैना ने सिर झुकाकर कहा,
“हाँ। वो मेरा मंगेतर था। शादी से ठीक एक हफ़्ता पहले... एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गई।”

कमरे में सन्नाटा फैल गया।
बारिश की बूंदें अब खिड़की पर फिर से दस्तक देने लगी थीं।


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कबीर कुछ पल तक कुछ नहीं बोला।
वो बस उसे देखता रहा — जैसे उसके भीतर झाँकने की कोशिश कर रहा हो।

“नैना, जो चला गया... वो कभी लौटता नहीं। पर जो छूट गया, उसकी याद ज़रूर लौटती है।”

नैना ने धीरे से कहा,
“तुम नहीं जानते कबीर, कुछ यादें सिर्फ़ यादें नहीं होतीं... वो डर बन जाती हैं।”


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शाम को कबीर जब जाने लगा, उसने कहा —
“अगर तुम्हें डर लगे तो मुझे कॉल कर लेना। मैं पास ही हूँ।”
नैना ने हल्की सी मुस्कान दी,
“डर को कॉल नहीं किया जाता, उससे लड़ा जाता है।”

कबीर ने जवाब दिया,
“ठीक है... पर अगर लड़ते-लड़ते थक जाओ, तो मैं हूँ।”


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रात 11:30 बजे।
नैना बालकनी में खड़ी थी।
नीचे सड़क पर कुछ लड़के बाइक चला रहे थे, दूर किसी बिल्डिंग में म्यूज़िक चल रहा था।
वो सोच रही थी — क्या वाकई ये खत आर्यन से जुड़ा है?
या कोई खेल खेल रहा है उसके साथ?

तभी अचानक फोन बजा —
स्क्रीन पर नंबर अनजान था।
वो हिचकिचाई, फिर कॉल उठाया।

“हैलो?”
सिर्फ़ खामोशी थी।
फिर हल्की सी सांसों की आवाज़...
और एक धीमी फुसफुसाहट —
“मैं लौट आया हूँ, नैना।”

उसके हाथों से फोन गिर गया।
दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।

वो काँपते हुए बोली,
“क-कौन?”
पर कॉल कट चुकी थी।


---

वो घबरा गई।
जल्दी से कबीर को कॉल किया —
“कबीर... कोई था... किसी ने...”
कबीर की आवाज़ आई,
“शांत रहो, मैं आता हूँ।”

पंद्रह मिनट में वो उसके घर पहुँच गया।
नैना का चेहरा पीला पड़ गया था।

कबीर ने पूछा,
“क्या हुआ?”

उसने सब बताया — फोन कॉल, फुसफुसाहट, वो आवाज़।

कबीर ने उसका हाथ थाम लिया,
“नैना, जो भी हो रहा है, मैं हूँ तुम्हारे साथ। शायद कोई पुराना जानकार मज़ाक कर रहा है। डरने की ज़रूरत नहीं।”

नैना की आँखों से आँसू बह निकले,
“मैं अब और डरना नहीं चाहती... मैं थक गई हूँ।”

कबीर ने बस धीरे से उसका सिर अपने कंधे पर रख दिया।
कमरे में सिर्फ़ खामोशी थी — मगर उस खामोशी में एक अजीब सुकून था।


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अगले दिन।
कबीर अपने कैमरे से तस्वीरें देख रहा था।
वो कल की रात की तस्वीरें नहीं थीं, बल्कि शादी की कुछ पुरानी फ़ोटो थीं जो उसने राहुल के घर खींची थीं।
वो स्क्रॉल कर रहा था, तभी उसकी उंगलियाँ अचानक रुक गईं।

एक तस्वीर में —
भीड़ के बीच एक आदमी खड़ा था, कैमरे की ओर नहीं, नैना की ओर देख रहा था।
उसके चेहरे पर अजीब मुस्कान थी।

कबीर की आँखें सिकुड़ गईं।
वो चेहरा... वही था जो नैना ने एक बार उसे अपने मोबाइल की पुरानी फ़ोटो में दिखाया था — आर्यन।

वो तुरंत नैना के घर पहुँचा।
“नैना, तुमने कहा था आर्यन मर गया था... है ना?”

नैना ने घबराकर पूछा,
“हाँ... क्यों?”

कबीर ने मोबाइल आगे किया।
“तो फिर ये कौन है?”

नैना की साँस रुक गई।
वो तस्वीर देखकर कुछ पल चुप रही, फिर फुसफुसाई —
“ये... ये तो वही है। पर कैसे... वो तो—”

कबीर बोला,
“शायद कोई उसका हमशक्ल हो।”

नैना ने सिर हिलाया,
“नहीं कबीर... वो नज़र, वो चेहरा मैं भूल नहीं सकती। वो आर्यन ही है।”


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कबीर ने गहरी साँस ली।
“ठीक है। अगर वो जिंदा है, तो हम पता लगाएंगे।”

नैना ने हैरानी से कहा,
“तुम क्यों मेरी मदद कर रहे हो?”

कबीर ने मुस्कराकर कहा,
“क्योंकि अब ये सिर्फ़ तुम्हारा डर नहीं रहा... ये मेरी कहानी भी बन चुकी है।”


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शाम को कबीर और नैना दोनों उसी इलाके में गए जहाँ शादी हुई थी।
कबीर ने पड़ोसियों से बात की, सुराग़ ढूँढने की कोशिश की।
एक बुज़ुर्ग माली ने कहा —
“हाँ, उस दिन एक आदमी आया था... बरसात में बाहर खड़ा था, सबको देख रहा था। पर अंदर नहीं आया।”

नैना ने काँपती आवाज़ में पूछा,
“वो... कैसा दिखता था?”

माली बोला,
“सूट पहने था... गीला हो गया था, पर मुस्कुरा रहा था। जैसे किसी को देख रहा हो अंदर से।”

नैना की आँखों से आँसू गिरने लगे।
कबीर ने उसका हाथ थामा,
“अब डरना नहीं, हम इसे खत्म करेंगे।”


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रात को जब वो दोनों लौट रहे थे,
कार की खिड़की के बाहर हवा चल रही थी।
नैना ने धीरे से कहा,
“कबीर, तुम जानते हो... मैं लोगों से भागती हूँ, लेकिन तुमसे नहीं भाग पाती।”

कबीर मुस्कराया,
“शायद इसलिए कि मैं तुम्हें पकड़ने नहीं, साथ चलने आया हूँ।”

दोनों चुप हो गए।
पर वो चुप्पी किसी खामोशी की नहीं,
बल्कि एक नये रिश्ते की शुरुआत की थी —
जहाँ डर के बीच भी प्यार की लौ जलने लगी थी।


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लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।
क्योंकि जैसे ही वो दोनों घर पहुँचे,
नैना के दरवाज़े पर फिर से एक लिफ़ाफ़ा पड़ा था।

अंदर इस बार सिर्फ़ दो शब्द थे —
“अगला कदम...”

और नीचे खून से लिखा एक नाम —
“कबीर।”


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(कभी-कभी सच्चाई मोहब्बत के सबसे करीब होती है, और डर सबसे गहरा झूठ बनकर सामने आता है)


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बारिश थम चुकी थी।
पर नैना के मन में अब भी तूफ़ान चल रहा था।
वो टेबल पर रखा लिफ़ाफ़ा बार-बार देख रही थी, जैसे उसमें उसकी ज़िंदगी का कोई रहस्य छिपा हो।

कबीर ने वो लिफ़ाफ़ा उठाया।
उसके अंदर खून से लिखा नाम — “कबीर।”
उसकी उँगलियाँ जैसे जम गईं।

“किसी ने तुम्हें डराने के लिए ये किया है,” उसने कहा, पर आवाज़ में खुद डर की परछाई थी।

नैना बोली,
“लेकिन क्यों... अब वो तुम्हारा नाम क्यों लिखेगा?”

कबीर ने गहरी साँस ली —
“शायद इसलिए कि अब मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

दोनों कुछ पल चुप रहे।
कमरे में सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक थी, और बाहर हवा में उड़ते पत्तों की सरसराहट।


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अगली सुबह,
नैना उठी तो रसोई से कॉफी की खुशबू आ रही थी।
वो मुस्कुराई — “कबीर…”

किचन में कबीर खड़ा था, एप्रन पहने हुए, कॉफी मग्स टेबल पर रख रहा था।
“सुबह की शुरुआत कॉफी से बेहतर क्या हो सकती है?”

नैना बोली,
“अगर ये डर न हो तो…”

कबीर ने हल्के से कहा,
“डर को दरवाज़े के बाहर छोड़ दो। आज थोड़ा मुस्कुरा लो, वैसे भी कल शाम अंकिता आंटी के यहाँ फ़ैमिली गेट-टुगेदर है।”

नैना ने भौंहें सिकोड़ लीं,
“तुम्हें कैसे पता?”

कबीर मुस्कराया,
“रुही ने बताया। उसने कहा, तुम शायद नहीं जाओगी… तो मैंने कहा, मैं लेकर जाऊँगा।”

नैना ने चाय की चुस्की ली और धीमे से कहा,
“कभी-कभी लगता है तुम बहुत जल्दी मेरे करीब आ गए।”

कबीर ने जवाब दिया,
“और कभी-कभी लगता है तुम बहुत देर से आईं।”

उन दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी छा गई —
जिसमें किसी अनकहे एहसास की गूँज थी।


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शाम — शाह परिवार का समारोह।

चारों तरफ़ लाइटें, म्यूज़िक, और घर की खुशबू थी।
लोग हँस रहे थे, बातें कर रहे थे, बच्चे पटाखे चला रहे थे।
नैना हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में थी, उसके बाल खुले थे, और चेहरा हल्का-सा मुस्कुरा रहा था।

कबीर ने जब पहली बार उसे देखा, तो एक पल को सब कुछ थम गया।
वो सिर्फ़ बोला,
“तुम्हें देखकर आज लगता है, ज़िंदगी ने कोई गलती सुधारी है।”

नैना हँस पड़ी,
“कबीर, तुम बहुत फ़िल्मी हो।”

कबीर मुस्कराया,
“और तुम उस फ़िल्म की हीरोइन।”

उनकी बातों में सादगी थी, मगर दिल में कुछ और चल रहा था —
वो एहसास, जो कह नहीं सकते थे, पर छिपा भी नहीं सकते थे।


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शाम धीरे-धीरे ढल रही थी।
लोग डांस फ़्लोर पर थे।
नैना ने अपनी दोस्त अंकिता से कहा,
“मुझे थोड़ा बाहर जाना है, हवा लेने।”

वो बगीचे में चली गई।
हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और दूर मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं।
वो आँखें बंद करके साँस ले ही रही थी कि पीछे से किसी की आहट हुई।

“नैना…”
वो पलटकर बोली — “कबीर?”

पर वहाँ कोई नहीं था।

फिर से आवाज़ आई —
“तुम मुझे भूल गईं?”

उसका दिल धड़क उठा।
वो घूमी —
सामने एक आदमी खड़ा था, गहरे नीले सूट में, हल्की मुस्कान के साथ।
वो चेहरा… वही जो उसने तस्वीर में देखा था।

“आर्यन…” उसके होंठों से नाम निकल गया।

वो धीरे-धीरे उसके करीब आया।
“मैंने कहा था न… मैं लौटूंगा।”

नैना पीछे हटने लगी।
“ये संभव नहीं… तुम मर चुके हो!”

आर्यन मुस्कराया,
“मौत कभी मेरी हमसफ़र नहीं बन सकी।”

उसके शब्दों में अजीब सर्दी थी।
नैना पीछे हटते हुए बोली,
“कबीर! कबीर कहाँ हो?”

तभी कबीर भागते हुए वहाँ आया,
“नैना!”

पर जैसे ही उसने चारों ओर देखा —
वहाँ कोई नहीं था।
बस नैना अकेली खड़ी काँप रही थी।

“कबीर, वो यहीं था… आर्यन!”
कबीर ने उसके कंधे थामे,
“शांत हो जाओ नैना, वहाँ कोई नहीं है।”

वो बोली,
“नहीं, मैंने देखा उसे… वो मुझसे बोला भी।”

कबीर ने चारों ओर देखा —
घास पर गीले कदमों के निशान थे, जो गेट की ओर जा रहे थे।

उसने धीरे से कहा,
“कोई था यहाँ…”


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घर लौटते वक्त दोनों चुप थे।
नैना की आँखें डरी हुई थीं, और कबीर के मन में कई सवाल।

घर पहुँचते ही नैना सीधा कमरे में चली गई।
कबीर ने एक फ़ोन उठाया — उसने अपने पुलिसवाले दोस्त आदित्य को कॉल किया।

“मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। एक आदमी है — आर्यन खन्ना। कहा जाता है वो मर चुका है, पर लगता है वो ज़िंदा है।”

आदित्य बोला,
“आर्यन खन्ना? वही बिज़नेस पार्टनर जिसने अपनी गर्लफ़्रेंड को छोड़ने से पहले सारा पैसा ट्रांसफर किया था?”

कबीर चौंका,
“क्या?”

आदित्य ने कहा,
“हाँ, उसकी एक्सीडेंट वाली रिपोर्ट झूठी थी शायद। उसके बैंक अकाउंट में एक्सीडेंट के दो दिन बाद बड़ी ट्रांज़ेक्शन हुई थी।”

कबीर की मुट्ठियाँ भींच गईं।
“मतलब वो ज़िंदा है… और वही नैना को डराना चाहता है।”


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अगली सुबह कबीर नैना के लिए चाय लेकर आया।
वो बालकनी में बैठी थी, आँखों में थकान और मन में उलझन।

कबीर ने कहा,
“आर्यन मर नहीं गया। उसने सब प्लान किया था।”

नैना ने घबराकर पूछा,
“क्या मतलब?”

कबीर बोला,
“उसने अपने ही एक्सीडेंट का ड्रामा किया, और फिर ग़ायब हो गया। शायद किसी पुराने राज़ या पैसों की वजह से।”

नैना की आँखों में आँसू आ गए।
“तो वो जो मैंने देखा, वो सपना नहीं था…”

कबीर ने कहा,
“नहीं, वो सच था। लेकिन अब हमें सावधान रहना होगा। शायद वो तुम्हें वापस चाहता है, या कुछ और।”


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दिन बीतते गए, और नैना की ज़िंदगी जैसे दो हिस्सों में बँट गई —
एक जिसमें कबीर था,
और दूसरा जिसमें आर्यन की परछाई।

कबीर उसके साथ रहता, हर जगह उसे हँसाने की कोशिश करता,
पर हर बार कुछ न कुछ ऐसा होता जिससे नैना फिर डर जाती।

कभी दरवाज़ा अपने आप खुल जाता,
कभी कमरे की लाइट झिलमिला जाती,
कभी खिड़की से कोई परछाईं गुजरती दिखती।

एक शाम कबीर ने कहा,
“नैना, मैं सोच रहा हूँ कि हमें दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना चाहिए। कहीं शांत जगह।”

नैना ने सिर हिलाया,
“शायद अच्छा रहेगा।”


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दो दिन बाद दोनों लोनावला पहुँचे।
पहाड़ों की ठंडी हवा, झरनों की आवाज़, और हरियाली में घिरा एक छोटा-सा गेस्टहाउस।

वहाँ के सुकून में जैसे दोनों की सांसें कुछ हल्की हुईं।
शाम को वो बालकनी में बैठे थे, बारिश देख रहे थे।

कबीर ने कहा,
“जानती हो, जब तुम हँसती हो तो मुझे लगता है दुनिया अब भी खूबसूरत है।”

नैना मुस्कुराई,
“तुम्हें पता है, मुझे तुमसे डर नहीं लगता… बस एक अपनापन लगता है।”

कबीर ने उसकी ओर देखा —
आँखों में मोहब्बत का सागर था।
वो कुछ कहने ही वाला था कि तभी बाहर किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई।

कबीर उठा और बाहर गया।
बरामदे में खून की एक बूंद टपकी हुई थी…
और वहाँ पड़ा था — वही लिफ़ाफ़ा।

उसने उठाया —
अंदर लिखा था,
“अब सिर्फ़ नैना नहीं… तुम भी मेरे खेल का हिस्सा हो।”

कबीर ने मुट्ठी भींची।
“आर्यन… अब खेल खत्म होगा।”